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करीब दस साल बाद बंटी अपने मामा के यहाँ घुमने गया. पहली बार जब गया था तब वह छोटा था अब करीब 18 साल का है. वहां बबलू से मुलाकात हो गयी. बस फिर क्या था घुमने का प्रोग्राम बनाया.
तो बंटी ने कार बुक करने की सोची. उसपर बबलू ने कहा आ तुझे घुमने का मतलब समझाता हूँ बोलता हुआ बस में जा चढ़ा. ठसाठस भीड़ से भरी बस. कहीं जगह ही नहीं. बबलू ठेलता हुआ एक औरत के पास जा सटा. फिर बंटी को आँख मरते हुए इशारे किया. बंटी यह देख कर क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा वाली स्तिथि में खड़ा. बबलू को ऐसा देख यकीन नहीं हुआ. यह बबलू तो बिलकुल ही बदल गया. उसे मना भी किया लेकिन नहीं माना. आखिर मेरी माँ बहन भी तो ऐसे ही बस में कभी कभी सफ़र करते हैं. यह सोच कर बड़ा दुःख हुआ.
बबलू महिला को लगातार इधर उधर छूता, सटा हुआ तो था ही ऊपर से कभी कभी जोर से धक्का मरता, जब जब बस थोडा झटके लेती है. महिला भी असहज महसूस कर रही थी लेकिन भीड़ थी शायद इसलिए कह नहीं पा रही थी,या आगे जा नहीं पारही थी. तभी एक जगह पर रुकने के लिए बस ने ब्रेक लगाया और बबलू ने भी महिला से एक बार फिर बदतमीजी कर दी. कुछ लोग उतरे और उस औरत को आगे बढ़ने का थोडा मौका मिला. बस चल पड़ी. बबलू फिर उस महिला के पास जा सटा. जैसे ही उसने बदतमीजी की महीले ने उसके तरफ घूम कर कहा ” बस बेटा बस! बहुत हो गया”. बंटी तो शर्म से पानी और बबलू भी ऐसे शब्दों की आशा नहीं कर रहा था. सर तो ज़मीन में गड़ा जा रहा था. पूरी बस के लोगों ने ऐसी नज़रों से घुरा के रहा न गया उतरना ही पड़ा. आज बंटी को बबलू के दोस्त होने पर बड़ा दुःख हुआ. उसके बाद कभी बंटी ने बबलू को अपने घर नहीं बुलाया.
बबलू ने उस दिन के बाद फिर किसी को नहीं छेड़ा. आज भी ऐसी हरकतें बसों में होती रहती हैं. लोग बदल जाते हैं लेकिन वही आदतें अभी भी है.अब घर की औरतों को अकेले भेजने में जी घबराता है. बबलू जैसे लोगों को पाते ही सबक सिखाएं. औरतों को इज्ज़त दें. शायद जिस तरह बबलू ने उस दिन के बाद फिर किसी को नहीं छेड़ा कोई और भी यह रास्ता बदल सकता है.
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