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सोचता हूँ अब शादी कर ही लूं

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सोचता हूँ अब शादी कर ही लूं. ऐसा लोग कहते भी हैं और लग भी रहा है. लेकिन किस से. कोई ढंग की मतलब अपने पसंद की लड़की मिले तो बात बने. अब आप सोचते होंगे की इन्हें एक लड़की ही नहीं मिल रही है. 1-2 तो पसंद भी किया था लेकिन वोह बाज़ी कोई और मार ले गया (कमबख्त). वास्तव में मैं भी तो घी के जले हुए लड्डू की तरह हूँ. तो क्या हुआ ऐसों की बीवी कितनी अच्छी देखि है. बाजूवाला तो मुझसे भी गया गुजरा है लेकिन बीवी देखो तो जलन होती है.  बिलकुल चाँद और रात का मेल है. साथ कर के फोटो  खीचो तो एकबार में एक ही की तस्वीर आएगी. ज्यादा लाइट दिया तो लड़की गायब, और फ्लैश नहीं मारा तो लड़का गायब. तो क्या मुझे नहीं मिलेगी.


खैर एक जगह लड़की का पता चला. दोस्तों ने सुनाया. लड़की ज़बरदस्त है, मतलब वाईट भी है और हाईटभी. मां बाप तो पहले ही गुज़र चुके थे (उसके नहीं मेरे …बड़े हमदर्द बनते हैं) तो शुरुआत के लिए हमें ही जाना पड़ गया. वैसे जाने की खुशी तो थी ही.
फिर क्या सजधज कर पहुँच गए हम चारो लड़की के घर. मुझसे ज्यादा तो मेरे दोस्त सजे हुए थे.(दुष्ट कहीं के….). उन्हें भी मालुम था हमारे बारे में. जी आवभगत तो ठीक ही हुआ. नाश्ता अच्छा था. दोस्त तो खुश हो गए बोले चलो घर तो अच्छा मिला. थोड़ी देर बाद- नानी जी थोडा लड़की को बुलाएं देखलें तो ठीक है ना (हौले से कहा). तभी वोह परी आयी गुलाबी सलवार पहने हुए.  हाय ! कितनी सुन्दर लग रही थी. साथ में और एक लड़की थी. सिर्फ आते समय देखा क्यूंकि उसके भाई, बाप सभी वहीँ खड़े थे. येही मुसीबत है. थोडा तो हटना चाहिए ना. ताकि अच्छे से देख सकें. अब सामने ही किसी की बहन, बेटी को आँख उठा उठा कर सर से पैर तक देखना अच्छा नहीं लगता ना. आखिर सलीकेदार जो ठहरे. लुच्चा लफंगा होता तो कब का लाइन मार रहा होता. दोस्तों ने ही सबकुछ पूछा. मैंने तो पहली नज़र में ही पसंद कर लिया था मतलब पहली नज़र वाली बात.  समझे (और नहीं समझे तो मेरी गलती नहीं). फिर लड़की चली गयी.

खैर अपनी तरफ से हमने तो कह दिया की लड़की पसंद है और गारंटी के तौर पर जिसे शगुन भी कहते हैं कुछ पैसे थमाए जो दोस्तों ने मुझसे ही आने से पहले ही लिए थे (कमबख्त दोस्त). खैर दोस्त तो साथ देते ही है.
फिर क्या, खा पीकर निकल गए. यारों ने कहा- तुझे लड़की पसंद हो गयी अच्छी बात है. "हाँ यार वोह गुलाबी सलवार उसपर क्या जँच रही थी".
"अरे क्या बात कर रहे हो ! लड़की तो नीला रंग का पहने हुए थी. गुलाबी सलवार पहने हुई तो उसकी मां थी".
" तुमलोग मजाक कर रहे हो”.

नहीं, बिलकुल मजाक नहीं कर रहे”.

अरे सच सच बोलो. मैंने तो गुलाबी वाली को ही देखा था”.

हाँ यार गुलाबी वाली तो उसकी माँ थी”.

“यार इसका मतलब मैंने ठीक से देखा नहीं.अच्छा चल एक बार फिर से देख लेते है अभी ज्यादा दूर नहीं आये हैं”.
"ना बाबा, हमलोग नहीं जायेंगे, देखा नहीं उसका भाई कितनी कड़क नज़र से देख रहा था. अब जाकर क्या बोलेंगे तुम्हारी मां को पसंद किया था ज़रा बहन को बुलाना. हम तो नहीं जायेंगे. छोड़ना अब दूसरी जगह देखेंगे". 

अब क्या करता मन बाँध कर लौट आया.  क्या करूँ कोई वापस जाने को राज़ी ही नहीं हुआ ! बेटी की जगह माँ को पसंद कर आया.  खैर खाना बहुत अच्छा बनाया था. हम सभी को खाना बहुत पसंद आया.


फिर एक दिन सुबह ही अपने दोस्त के साथ फूफू के यहाँ पहुंचा. कोई लड़की सोयी हुई थी वहां पर जाकर, भगाया उसे. फूफू के घर में कोई बच्चा नहीं है और वोह हमें खूब मानती है.

"बड़े दिनों बाद आये बेटा".
"हाँ सोचता हूँ शादी कर लूं उसी के लिए लड़की खोजने आया हूँ. कोई है ऐसी आपके नज़र में".
"हाँ ऐसी लड़की तो है. चलो छत पर दिखाती हूँ".

दोनों दोस्त छत पर गए एक अच्छी लड़की दिखी तो मन खुश हुआ. फूफू के आते ही बताया उसके बारे में. 

वोह बोली नहीं- बेटा वोह नयी नयी शादी हो कर आयी है. तुमलोग थोडा बैठो एक लड़की आ रही है उसे देख लो (नाश हो इस शादी काजो पसंद आये कोई न कोईले उड़ता है).
तभी एक लड़की आयी आँख मलते हुए…. ठीक से देखा ……अरे यह तो वोही है जिसे अभी अभी हमने यहाँ से भगाया था. मुंह धुलवा कर लाये थे लोग. अभी भी नींद में ही थी बेचारी, ऐसा लग रहा है.

यार सही उम्र में अगर शादी हुई होती तो थोड़ी इससे छोटी मेरी बेटी होती”. फूफू तो फूफू है माँ जैसी. बस अपनी संतान दिखती है जिसे. यहाँ से भी खाली हाथ लौटे.

खैर वोह तो पुराने ख्यालात की थीं सो अपने हिसाब से दिखा रही थीं. आपलोग तो नए लोग हो नए ज़माने के (युवा पीढी, देश का भविष्य.…) आपके …..ज्ञान में ऐसी कोई राजकुमारी होगी (होगी क्या, है. आखिर अपने लिए तो खोजा ही हैं) तो मेरा उद्धार करना न भूलें. ना ना, मैं भी कैसी बातें कर रहा हूँ आप लोग भला कैसे भूलेंगे (आखिर आप हमारे दोस्त हो ना)? तब तक कहीं और भी ढूंढ रहा हूँ.  चिंता है कही उम्र ना निकल जाए. मेरी नहीं…..

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