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यह लोक कथा है जिसमें दो कौवों की कहानी है और दोनों बहने है. खासकर नीले पंक्तियों (जहाँ भी एक साथ दिए हुए हैं) को एक सांस में पढ़े तो बात का मज़ा ही अलग होगा.
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दोनों बहने जब रात में सोने के लिए पहुँची.
बड़ी– क्या बात है आज तुम बहुत खुश लग रही हो.
हाँ है एक ख़ास बात छोटी ने जवाब दिया.
बड़ी– मुझे भी तो बताओ.
छोटी-मैंने एक जगह पर लाल लाल बिलकुल पके हुए करेले देखे हैं. सुबह होते ही खाने जाउंगी.
बड़ी– कहाँ देखा है. मुझे भी बताओ.
छोटी– नहीं तुम खा जाओगी तब.
बड़ी– अरे नहीं नहीं मैं तुम्हारी बहन हूँ. मैं ऐसा नहीं करूगी. और आखिरकार छोटी से करेले का पता पूछ ही लिया. मन ही मन बड़ी खुश हुई के कल भोर ही में मुझे
निकलना पड़ेगा, ऐसे जैसे की छोटी को पता ही न चले.
भोर होते ही उठ के कौवा गयी मुंह धोने गंगा नदी में.
गंगा नदी में कौवा –
गंगा मैय्या गंगा री, दे तो पानी,
धो के मुख, खाऊं करेला.
तो गंगा मैय्या बोली– तुम मेरे पानी में मुंह कैसे धोयेगी ?, इसकी धारा तो बहुत तेज है, बह जाएगी. मेरा पानी लेने के लिए तो तुम्हें कुम्हार का चूका (मिटटी का अर्धगोलाकार बर्तन) लाना पड़ेगा.
अब कौवा गयी कुम्हार पास और बोली–
कुम्हार भैय्या कुम्हार रे,
दे तो चूका, उठा के पानी,
धो के मुख, खाऊं करेला.
कुम्हार– मिटटी तो है ही नहीं, तो पहले मिटटी ला के दे तबना.
कौवा-
धरती मैय्या धरती री, दे तो माटी, बना के चूका,
उठा के पानी, धो के मुख, खाऊं करेला.
धरती मैय्या– बेटी, मेरी मिटटी तो ऐसे ही नहीं ले जा सकेगी. तुम्हें हिरण के सिंग लाने होंगे, तब तो तुम मिटटी खोद सकोगी.
कौवा बोली हिरण से –
हिरण भैय्या हिरण रे, दे तो सिंग,
खोद के मिटटी, बना के चूका,
उठा के पानी, धो के मुख, खाऊं करेला.
हिरण– अच्छा तो तुझे मेरा सिंग चाहिए, मुझको क्या तू पकड़ सकेगी ? जा शिकारी कुत्ता ले के आ, तब तू मुझे पकड़ सकती है.
फिर कौवा पहुंची कुत्ते के पास–
कुत्ता भैय्या कुत्ता रे, चल तो वन,
पकड़ें हिरण, ले के सिंग, खोद के मिटटी,
बना के चूका, उठा के पानी,
धो के मुख, खाऊं करेला.
कुत्ता बोला– भागते हो यहाँ से के नहीं, खुद ही दो दिन से दूध नहीं पिया मैंने. पहले मुझे दूध ला के दे फिर शिकार करेंगे.
अब कौवा गयी गाय के पास–
गय्या मैय्या गैय्या गे, दे तो दूध, पी के कुत्ता,
जा के वन, मारके हिरण, ले के सिंग,
खोद के मिटटी, बना के चूका, उठा के पानी,
धो के मुख, खाऊं करेला.
तो गाय बोली– दूध कैसे दूं, कल से कुछ खायी नहीं मैं. पहले मेरे लिए घांस तो ला के दे.
तो कौवा फिर गयी घांस के पास–
घास भैया घास रे, थोडा दे तो घास,
खा के गय्या, दे के दूध, पी के कुत्ता,
जा के वन, मारके हिरण, ले के सिंग,
खोद के मिटटी, बना के चूका, उठा के पानी,
धो के मुख, खाऊं करेला.
घांस कहे– मुझको ऐसे ही काट सकोगी ? जा पहले हंसुआ ले के आ. तब ना. ऐसे में तो तेरे ही हाथ कट जायेंगे.
अब कौवा गयी हंसुआ के पास–
हंसुआ भैया हंसुआ रे, चल तो हंसुआ,
काट के घास, खा के गय्या,
दे के दूध, पी के कुत्ता, जा के वन,
मारके हिरण, ले के सिंग,
खोद के मिटटी, बना के चूका,
उठा के पानी, धो के मुख, खाऊं करेला.
तब हंसुआ ने जवाब दिया– मेरे मुंह में दांत नहीं है, लोहार पास ले के चल, दांत बना देगा तो घास काट लेना.
अब लोहार के पास गयी बेचारी–
लोहार भैया लोहार रे,
ले तो हंसुआ, बना तो दांत, काट के घास,
खा के गय्या, दे के दूध, पी के कुत्ता, जा के वन,
मार के हिरण, ले के सिंग, खोद के मिटटी,
बना के चूका, उठा के पानी, धो के मुख, खाऊं करेला.
तो लोहार ने कहा – हंसुआ तो तैयार है. कहो लाल लोगी के काला.
उसे तो लाल करेला दिखने लगा. तो बोली बिलकुल लाल देना.
लोहार– अच्छा कैसे ले जाएगी.
कौवा– मेरे गर्दन में रख दे.
लोहार ने गरमा गरम लाल हंसुआ कौवा के गर्दन पर रख दिया. फिर क्या छन छन कर कौवा जल मरी.
नोट- यह आपके लिए आप सभी के आदर में.
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